HomeLifestyleपरम्परा : पति की दीर्घायु कामना का पर्व है करवाचौथ

परम्परा : पति की दीर्घायु कामना का पर्व है करवाचौथ

हर सुहागिन की कामना है कि वह अपने पति की दीघार्यु के लिए करवा चौथ का व्रत करे। जिसके लिए वह कई दिन पहले से सजने संवरने और धार्मिक आस्था के साथ उपवास रखकर इस पर्व को मनाती है। करवाचौथ का उपवास कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस बार करवा चौथ का व्रत एक नवंबर बुधवार के दिन मनाया जा रहा है। इस दिन कार्तिक संकष्टी चतुर्थी होती है। इस व्रत में भगवान शिव माता पार्वती और चंद्रमा का पूजन किया जाता है। इस बार करवा चौथ पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं। एक नवंबर करवा चौथ के दिन स्वार्थ सिद्धि योग है। साथ ही इस दिन चंद्रमा शाम 4 बजकर 12 मिनट तक अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेगा। इस दिन दोपहर में 2 बजकर 7 मिनट से शिव योग भी रहेगा। इस बार करवा चौथ पर शुभ योग में पूजन करने से उत्तम फल की प्राप्ति होगी।

करवा चौथ पूजन का शुभ मुहुर्त सुबह पूजन के लिए शुभ मुहूर्त 7 बजकर 55 मिनट से 9 बज कर 18 मिनट तक अमृत चौघडिय़ा में व्रत करें। इसके बाद 10 बजकर 41 मिनट से लेकर 12 बजकर 4 मिनट तक शुभ चौघडिंया में पूजा करना शुभ रहेगा। शाम के समय 4 बजकर 13 मिनट से शाम में 5 बजकर 36 मिनट तक लाभ चौघडिंया में पूजन करना लाभप्रद होगा। एक नवंबर 2023 बुधवार करवा चौथ के दिनन चंद्रोदय रात में 8 बजकर 26 मिनट पर होगा। करवा चौथ के दिन सुबह स्नान आदि करें इसके बाद उपवास संकल्प लें। मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये। इस मंत्र को बोलकर संकल्प लें।

यह संकल्प लेकर पूरे दिन निर्जला रहकर व्रत किया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला उपवास रख चंद्रमा की पूजा करती हैं। इसके साथ ही करवा चौथ पर भगवान शिव, मां पार्वती, गणेश और कार्तिकेय जी के अलावा करवा माता की पूजा का भी विधान है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, करवा चौथ का व्रत रखने और विधि-विधान के साथ पूजा करने से दांपत्य जीवन में मधुरता आती है और पति-पत्नी का रिश्ता अटूट होता है। इसके अलावा पति की लंबी आयु के लिए भी करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इसके बाद गेरू से फ लक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। इसके बाद आठ पूरियों का अठावरी बनाएं। साथ में कुछ मीठा और पकवान बनाएं इसके बाद पीली मिट्टी से गौरी माता की प्रतिमा बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।गौरी की लकड़ी के आसन पर बिठाएं।

चौक बना कर आसन को उसपर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग आदि सामग्री माता पार्वती को अर्पित करें।पूजा के समय जल से भरा एक लोटा रखें। बायना देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं। माता गौरी भगवान गणेश और करवा माता की विधिवत पूजा करें। करवे पर 12 बिंदी रखें और गेहूं चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ से पानी घूमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।

रात में चंद्रमा निकलने के बाद चंद्रमा को अघ्र्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद प्राप्त करे। करवाचौथ का उपवास सूर्योदय से पहले शुरू होता है जिसे चांद निकलने तक रखा जाता है। इस उपवास में सांस अपनी बहू को सरगी देती है। इस सरगी को लेकर बहुएं अपने व्रत की शुरुआत करती हैं। इस व्रत में शाम के समय शुभ मुहूतज़् में चांद निकलने से पहले पूरे शिव परिवार की पूजा की जाती है।चांद निकलने के बाद महिलाएं चंद्रमा को अघ्र्य देती हैं और अपने पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं। कुंवारी लड़कियां करवा चौथ का व्रत एक अच्छे वर की तलाश में रखती है। जहां सुहागिन इस व्रत में चंद्रमा की पूजा करती है तो वहीं, कुंवारी लड़कियां तारों को पूजती हैं।

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