HomeNational Newsउत्तराखंड के जंगलों में लगी आग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

नई दिल्ली। उत्तराखंड के जंगलों में आग को रोकने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम बारिश या क्लाउड सीडिंग के भरोसे हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रह सकते। सरकार को कारगर रूप से कुछ करना होगा। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने आग लगने की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए इन पर शीघ्र लगाम लगाने के लिए सरकार को आदेश देने की गुहार लगाई। वकील ने कहा कि दो साल पहले भी एनजीटी में याचिका लगाई थी। अब तक सरकार ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसलिए मुझे यहां आना पड़ा। ये मामला अखिल भारतीय है। उत्तराखंड इससे अधिक पीडि़त है। सरकार की ओर से दावाग्नि की घटनाओं और उसे काबू करने के उपायों की तफसील बताई।

सरकार ने कहा कि अब तक जंगलों में आग की 398 घटनाएं रजिस्टर की गई हैं। 350 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं जिनमें 62 लोगों को नामजद किया गया है। 298 अज्ञात लोगों की पहचान की कोशिश जारी है। कुछ लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में भी लिया गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार जितने आराम से ब्योरा दे रही है हालात उससे ज्यादा गंभीर हैं। जंगल में रहने वाले जानवर, पक्षी और वनस्पति के साथ आसपास रहने वाले निवासियों के अस्तित्व को भी भीषण खतरा है। जस्टिस गवई ने कहा कि क्या हम इसमें सीईसी यानी सेंट्रल एंपावर्ड कमिटी को भी शामिल कर सकते हैं?

हम बारिश के भरोसे बैठे नहीं रह सकते – सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कहा कि आपने देखा होगा कि मीडिया में जंगलों में आग की कैसी भयावह तस्वीरें आ रही हैं। राज्य सरकार क्या कर रही है? उत्तराखंड के जंगलों में आग को लेकर जस्टिस संदीप मेहता ने कहा कि हम बारिश और क्लाउड सीडिंग के भरोसे बैठे नहीं रह सकते। सरकार को आगे बढक़र शीघ्र ही कारगर उपाय करने होंगे। उत्तराखंड सरकार ने कहा कि अभी दो महीने आग का सीजन रहता है। हर चार साल में जंगल की आग का भीषण दौर आता है। इसके बाद अगले साल कम फिर और कम घटनाएं होती जाती हैं। चौथे साल ये फिर काफी ज्यादा होती हैं। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हमें देखना होगा कि केंद्रीय उच्चाधिकार समिति को कैसे शामिल किया जा सकता है। अब कोर्ट 15 मई को अगली सुनवाई करेगा।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments