नई दिल्ली । पक्षकार अपनी मनचाही दलील के साथ अदालत में नहीं जा सकते है। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अभिनव भारत कांग्रेस की याचिका खारिज कर दी है। इसके साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया गया है। उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका को 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया, जिसमें महात्मा गांधी की हत्या में भूमिका के लिए नवंबर 1949 में फांसी पर लटकाए गए नारायण डी आप्टे के एक रिश्तेदार को सार्वजनिक माफी जारी करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिका में एक कानून की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है, जिसने एक विशेष न्यायाधीश को एक अभियुक्त को क्षमादान देने के लिए कार्योत्तर शक्तियां प्रदान की थीं, जिसमें कहा गया था कि गांधी हत्याकांड में विनायक दामोदर सावरकर को गलत तरीके से फंसाने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया था।
पीठ ने अभिनव भारत कांग्रेस द्वारा इसके संस्थापक अध्यक्ष पंकज के फडनीस के माध्यम से दायर याचिका में की गई प्रार्थनाओं में से एक का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि सावरकर के साथ हुए अन्याय का आंशिक प्रायश्चित करने के लिए केंद्र को एक अधिकार प्राप्त समिति बनाने का निर्देश दिया जा सकता है। इस सपर शीर्ष अदालत ने कहा, आप इस तरह से हमारा समय बर्बाद नहीं कर सकते हैं। बिना किसी चीज के इस अदालत में चलने की आदत, हम इसकी अनुमति नहीं देंगे।
वकील ने कहा कि याचिका नाथूराम गोडसे या सावरकर के लिए नहीं है और यह केवल आप्टे के लिए है। पीठ ने वकीलों के कल्याण कोष में 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ याचिका खारिज कर दी। याचिका में बॉम्बे पब्लिक सिक्योरिटी मेजर्स (दिल्ली संशोधन) अधिनियम, 1948 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी, जिसने 1947 के बॉम्बे अधिनियम 6 की धारा 13 में उप-धारा 2 (ए) को पेश करके संशोधन किया था।