HomeNational Newsकलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सुवेंदु अधिकारी

कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सुवेंदु अधिकारी

नई दिल्ली । भारतीय जनता पार्टी के नेता और बंगाल में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने उनके पंचायत चुनाव भाषणों में कथित तौर पर शत्रुता को बढ़ावा देने के लिए उनके खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करने का मार्ग प्रशस्त किया है। अधिकारी की वकील बांसुरी स्वराज ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए गुरुवार को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया की पीठ के समक्ष इसका उल्लेख किया। पीठ ने बताया कि मामला 4 अगस्त को सूचीबद्ध किया जाएगा।

इसके पहले 20 जुलाई के एक आदेश में, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बंगाल पुलिस को एक जनहित याचिका (पीआईएल) को अदालत के समक्ष एक शिकायत के रूप में विचार करने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति आईपी मुखर्जी और न्यायमूर्ति बिस्वरूप चौधरी की खंडपीठ ने पुलिस से यह जांच करने को कहा था कि क्या सुवेंदु अधिकारी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत कोई मामला बनता है, और भाजपा नेता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा था। प्रासंगिक रूप से, न्यायमूर्ति मुखर्जी और न्यायमूर्ति चौधरी की खंडपीठ ने देखा कि अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर रोक लगाने वाले न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा द्वारा पारित पहले के आदेशों को गलत तरीके से पढ़ा जा रहा था।

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा था, हमारे संविधान का अनुच्छेद 361 केवल भारत के राष्ट्रपति और राज्य के राज्यपाल को आपराधिक मुकदमा चलाने से छूट देता है। विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 41 (डी) कहती है कि किसी भी व्यक्ति को आपराधिक मामले में कोई कार्यवाही शुरू करने या मुकदमा चलाने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा नहीं दी जा सकती है। अधिकारी ने वकील सिद्धेश शिरीष कोटवाल के माध्यम से दायर अपील के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। अपनी याचिका में, सुवेंदु अधिकारी ने जोर देकर कहा कि भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद से, उन्हें झूठी शिकायतों के आधार पर आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ा है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने उन्हें सुने बिना या उन्हें जवाब दाखिल करने की अनुमति दिए बिना अंतरिम आदेश पारित कर दिया।

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