नई दिल्ली। एक देश एक चुनाव बिल को लोकसभा ने मंगलवार को स्वीकार कर लिया है, इसे विस्तृत चर्चा के लिए जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भी भेज दिया गया है। लेकिन इस बार इस बिल का कानून बनना उतना आसान नहीं होने वाला है। क्योंके यह नहीं भूलना चाहिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास अपने तीसरे कार्यकाल में पूर्ण बहुमत नहीं है। ऐसे में विपक्ष के समर्थन के बिना एक देश एक चुनाव कानून नहीं बन सकता हैकेंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को एक देश-एक चुनाव का संशोधन बिल लोकसभा में पेश किया। भाजपा ने कहा कि इस विधेयक से देश का विकास तेजी से होगा, क्योंकि बार-बार चुनाव होने से व्यवस्था बिगड़ती है। कांग्रेस ने कहा कि ये संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है।
बिल पारित करवाने के लिए 362 वोट चाहिए – लोकसभा में अभी 543 सांसद है, ऐसे में एनडीए को बिल पारित करवाने के लिए 362 वोट चाहिए। अभी लोकसभा में एनडीए के पास सिर्फ 292 सांसद हैं, ऐसे में बहुमत पूर्ण करने के लिए विपक्षी सांसदों की मदद चाहिए होगी। इसी तरह राज्यसभा में इस बिल को पारित करवाने केलिए 164 वोट चाहिए। एनडीए के पास आंकड़ा बैठता है 112 का, 6 मनोनीत सांसद भी उसके साथ हैं। ऐसे में यहां भी दूसरी पार्टियों का समर्थन चाहिए होगा। विपक्ष की स्थिति की बात करें तो लोकसभा में उसके पास 205 वोट हैं तो वहीं राज्यसभा में 85 सांसद मौजूद हैं। ऐसे में अगर एक देश एक चुनाव को कानून बनना है तो विपक्षी वोट को भी अपने पाले में करने की जरूरत पड़ेगी जो आसान नहीं रहने वाला।
शिवसेना-टीडीपी ने किया बिल का समर्थन – शिवसेना (शिंदे) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने बिल का समर्थन किया। शिवसेना (शिंदे) के श्रीकांत शिंदे ने वन नेशन, वन इलेक्शन बिल का समर्थन करते हुए कहा कि कांग्रेस को रिफॉर्म शब्द से ही नफरत है। इस पर विपक्ष की ओर से जबरदस्त हंगामा शुरू हो गया। वहीं, टीडीपी की ओर से केंद्रीय मंत्री चंद्रशेखर पेम्मासानी ने बिना किसी शर्त के बिल का समर्थन करने की बात कही। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों का चुनाव पर खर्च एक लाख करोड़ के पार पहुंच गया है। एक साथ चुनाव कराने से इसमें कमी आएगी।
देश में एक चुनाव संभव नहीं:डी राजा
विजयवाड़ा में सीपीआई नेता डी राजा ने ने कहा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एक राष्ट्र, एक चुनाव बिल का विरोध करती है। हमारी पार्टी ने अपने विचार कोविंद और उनकी अध्यक्षता वाली समिति को सौंपे हैं। भारत जैसे देश में, जहां कई विविधताएं हैं, एक राष्ट्र, एक चुनाव अव्यावहारिक है और बिल्कुल भी संभव नहीं है। सरकार को इस प्रस्ताव के पीछे का उद्देश्य स्पष्ट करना चाहिए।
बिल पर सरकार को बहुमत नहीं मिला:कांग्रेस
कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने कहा कि संसद में सरकार को बिल के लिए दो-तिहाई बहुमत (307) चाहिए था, लेकिन सिर्फ 263 वोट मिले। इसके विरोध में 198 वोट पड़े। ये बिल जरूरी बहुमत नहीं जुटा सका है।
32 पार्टियां बिल के साथ, 15 ने विरोध जताया – एक देश-एक चुनाव पर 32 राजनीतिक दलों ने अपना समर्थन दिया है। इनमें जगन मोहन रेड्डी की वायएसआरसीपी, के चंद्रशेखर राव की बीआरएस और पलानीसामी की एआईएडीएमके जैसी पार्टियां शामिल हैं। ये तीनों पार्टियां किसी भी अलायंस का हिस्सा नहीं हैं। वहीं, 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया है। इसमें कांग्रेस के अलावा शिवसेना (यूबीटी), समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके जैसी पार्टियां शामिल हैं।
ये मॉडल देश के विकास में योगदान देगा: पूर्व राष्ट्रपति और समिति के अध्यक्ष रामनाथ कोविंद ने एक राष्ट्र, एक चुनाव के बारे में कहा कि जिस दिन हमारी अर्थव्यवस्था 10 प्रतिशत-11 प्रतिशत तक बढ़ेगी, हमारा देश दुनिया की तीसरी-चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की कतार में होगा। भारतीय जनसंख्या के विकास के लिए यह मॉडल सक्षम है। अन्य पहलुओं में भी, इस मॉडल को अपनाना राष्ट्र के लिए सहायक होगा।