नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को संवैधानिक करार देते हुए इसे बरकरार रखा है। गुरुवार को बहुमत से किए गए इस फैसले के पक्ष में चार जजों ने फैसला सुनाया, जबकि जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इस पर असहमति जताई। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में कोर्ट ने इस महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि असम समझौते के तहत धारा 6ए को 1985 में नागरिकता अधिनियम में जोड़ा गया था, जो 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में आने वाले प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है।
मुख्य न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह राज्यों को बाहरी आक्रमण और खतरों से सुरक्षित रखे, जो संविधान के अनुच्छेद 355 के अंतर्गत आता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 355 को नागरिकों और अदालतों को आपातकालीन अधिकार देने के रूप में नहीं देखा जा सकता, क्योंकि यह विनाशकारी हो सकता है। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज किया कि धारा 6ए असंवैधानिक है। यह कहते हुए कि भारत में नागरिकता देने का एकमात्र तरीका रजिस्ट्रेशन नहीं है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों का होना अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन नहीं है।
याचिकाकर्ताओं को यह साबित करना होगा कि उनका समूह अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा नहीं कर सकता क्योंकि वहां एक दूसरा जातीय समूह भी मौजूद है।कोर्ट ने केंद्र और असम सरकार को असम में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की पहचान और निर्वासन की प्रक्रिया को तेज करने के निर्देश दिए। अदालत ने राज्य में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए भी कहा और इस प्रक्रिया की निगरानी अब सुप्रीम कोर्ट करेगा। यह अहम फैसला गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने असम के नागरिकता विवाद और राज्य में विदेशी प्रवासियों के मुद्दे को लेकर दिया है, जो असम समझौते के बाद से विवाद का विषय बना हुआ था।