नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो प्रोग्राम मन की बात के रविवार को प्रसारित 100वें एपिसोड में कहा कि मेरे लिए ‘मन की बात’ केवल एक कार्यक्रम नहीं है, मेरे लिए एक आस्था, पूजा, व्रत है।’ पीएम मोदी ने कहा कि ‘जैसे लोग ईश्वर की पूजा करने जाते हैं, तो, प्रसाद की थाल लाते हैं। मेरे लिए ‘मन की बात’ ईश्वर रूपी जनता जनार्दन के चरणों में प्रसाद की थाल की तरह है। उन्होंने कहा कि ‘मन की बात’ मेरे मन की आध्यात्मिक यात्रा बन गया है।’ घर-परिवार छोड़ने की बात को लेकर पीएम ने कहा कि ‘पचासों साल पहले मैंने अपना घर इसलिए नहीं छोड़ा था कि एक दिन अपने ही देश के लोगों से संपर्क ही मुश्किल हो जाएगा। जो देशवासी मेरा सब कुछ है, मैं उनसे ही कट करके जी नहीं सकता था। मन की बात ने मुझे इस चुनौती का समाधान दिया। पीएम मोदी ने कहा कि ‘2014 में दिल्ली आने के बाद मैंने पाया कि यहां का जीवन तो बहुत ही अलग है। काम का स्वरूप अलग, दायित्व अलग, स्थितियां-परिस्तिथियों के बंधन, सुरक्षा का तामझाम, समय की सीमा भी अलग है।’
पीएम मोदी ने कहा कि ‘शुरुआती दिनों में, कुछ अलग महसूस करता था, खाली-खाली सा महसूस! करता था। ‘मन की बात’ ने मुझे इस चुनौती का समाधान दिया, सामान्य लोगों से जुड़ने का रास्ता दिया। पदभार और प्रोटोकॉल, व्यवस्था तक ही सीमित रहा और जनभाव, कोटि-कोटि जनों के साथ, मेरे भाव, विश्व का अदूट अंग बन गया।’ अब हर महीने में देश के लोगों के हजारों संदेशों को पढ़ता हूं, हर महीने में देशवासियों के एक से एक अद्भुत स्वरूप के दर्शन करता हूं। मैं देशवासियों के तप-त्याग की पराकाष्ठा को देखता हूं महसूस करता हूं। मुझे लगता ही नहीं है, कि मैं, आपसे थोड़ा भी दूर हूं।’ पीएम मोदी ने कहा कि ‘मन की बात’ स्व से समिष्टि की यात्रा है। ‘मन की बात’ अहम् से वयम् की यात्रा है। यह तो मैं नहीं तू ही इसकी संस्कार साधना है।
प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ के 100वें एपिसोड में कहा, ‘मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। आज मन की बात का 100 एपिसोड है। मुझे आप सबकी हजारों चिट्ठियां मिली हैं, सन्देश मिले हैं और मैंने कोशिश की है कि ज्यादा से ज्यादा चिट्ठियों को पढ़ पाऊं, देख पाऊं,संदेशों को समझने की कोशिश करूं। साथियो, 3 अक्टूबर, 2014, विजय दशमी का वह पर्व था और हम सबने मिलकर विजय दशमी के दिन मन की बात की यात्रा शुरू की थी। विजय दशमी यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व। कई बार यकीन नहीं होता कि मन की बात को इतने महीने और इतने साल गुजर गए।’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आपके पत्र पढ़ते हुए कई बार मैं भावुक हुआ, भावनाओं से भर गया, भावनाओं में बह गया और खुद को फिर संभाल भी लिया। आपने मुझे मन की बात के 100वें एपिसोड पर बधाई दी है, लेकिन मैं सच्चे दिल से कहता हूं, दरअसल बधाई के पात्र तो आप सब मन की बात के श्रोता हैं, हमारे देशवासी हैं। विजया दशमी जैसे बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है, वैसे ही मन की बात भी देशवासियों की अच्छाइयों का सकारात्मकता का एक अनोखा पर्व बन गया है।
मन की बात मेरे मन की आध्यात्मिक यात्रा – पीएम मोदी ने कहा कि ‘मन की बात’ में पूरे देश के कोने-कोने से लोग जुड़े, हर आयु वर्ग के लोग जुड़े। मेरे लिए ‘मन की बात’ ईश्वर रूपी जनता-जनार्दन के चरणों में प्रसाद की थाल की तरह है। ‘मन की बात’ मेरे मन की आध्यात्मिक यात्रा बन गया है। ‘मन की बात’ स्व से समिष्टि की यात्रा है। ‘मन की बात’ अहम् से वयम् की यात्रा है। उन्होंने कहा, ‘पचासों साल पहले मैंने अपना घर इसलिए नहीं छोड़ा था कि एक दिन अपने ही देश के लोगों से संपर्क ही मुश्किल हो जाएगा। जो देशवासी मेरा सब कुछ हैं, मैं उनसे ही कट करके जी नहीं सकता था। ‘मन की बात’ ने मुझे इस चुनौती का समाधान दिया। मन की बात ने मुझे कभी आपसे दूर नहीं होने दिया। साथियो, ‘मन की बात’ में जिन लोगों का हम जिक्र करते हैं वे सब हमारे नायक हैं जिन्होंने इस कार्यक्रम को जीवंत बनाया है। आज जब हम 100वें एपिसोड के पड़ाव पर पहुंचे हैं, तो मेरी ये भी इच्छा है कि हम एक बार फिर इन सारे नायकों के पास जाकर उनकी यात्रा के बारे में जानें।’
अपने मार्गदर्शक लक्ष्मणराव को किया याद – इस दौरान पीएम मोदी ने अपने मार्गदर्शक लक्ष्मणराव को याद करते हुए उनसे जो सीखा वह बताया। पीएम ने कहा कि मेरे एक मार्गदर्शक थे। उनका नाम श्री लक्ष्मणराव जी ईनामदार। हम उनको वकील साहब कहा करते थे’। वह हमेशा कहा करते थे कि दूसरों के गुणों की पूजा करनी चाहिए। सामने कोई भी हो आपके साथ का हो या आपका विरोधी हो, हमें उसके अच्छे गुणों को जानना और उनसे सीखने का प्रयास करना चाहिए। उनकी इस बात ने मुझे हमेशा प्रेरणा दी है। पीएम ने कहा कि पचासों साल पहले मैंने अपना घर इसलिए नहीं छोड़ा था कि एक दिन अपने ही देश के लोगों से संपर्क ही मुश्किल हो जायेगा।
जो देशवासी मेरा सब कुछ है, मैं उनसे ही कट करके जी नहीं सकता था। मन की बात ने मुझे इस चुनौती का समाधान दिया’। जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो वहां सामान्य जन से मिलना-जुलना स्वाभाविक रूप से हो ही जाता था लेकिन 2014 में दिल्ली आने के बाद मैंने पाया कि यहां का जीवन तो बहुत ही अलग है’। लक्ष्मणराव जी ईनामदार गुजरात में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए थे। वह गुजरात में संघ की नई शाखाएं खोलने और लोगों को उनसे जोड़ने का कार्य करते थे। उनका जन्म 21 सितंबर 1917 को महाराष्ट्र के सतारा में हुआ था। साल 1952 में संघ ने उनको गुजरात भेजा। वह आरएसएस के पहले प्रांत प्रचारकों में से थे, जिन्होंने संगठन को घर-घर तक पहुंचाने का काम किया।
रेडियो, दूरदर्शन, ट्रांसलेटर्स् व चैनल्स का जताया आभार – 100वें एपीसोड में पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम को रिकॉर्ड करने वाली टीम का भी आभार जताया। इसके लिए रेडियो, दूरदर्शन टीम आदि को धन्यवाद दिया। पीएम ने उन ट्रांसलेटर को भी धन्यवाद दिया जो बहुत ही कम समय में बहुत तेजी के साथ ‘मन की बात’ का विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करते हैं। साथ ही माय गोव. के साथियों का भी धन्यवाद दिया। इसके अलावा देशभर के टीवी चैनल्स, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोग, जो ‘मन की बात’ को बिना कॉमर्शियल ब्रेक के दिखाते हैं। उन सभी का पीएम ने आभार व्यक्त किया। आखिरी में ‘मन की बात’ की कमान संभालते हुए-भारत के लोग, भारत में आस्था रखने वाले लोगों का पीएम ने आभार जताया।