इन्दौर : अपने पिता को नाबालिग पुत्री द्वारा लिवर डोनेट करने की अनुमति हेतु दायर याचिका में मप्र हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू ने अर्जेंट सुनवाई करते हुए राज्य शासन से चार दिन में रिपोर्ट मांगी है कि क्या नाबालिग किशोरी की मेडिकल स्थिति यह है कि वह अपने पिता को अपना लिवर डोनेट कर सके। किशोरी की उम्र 17 वर्ष 10 माह अर्थात बालिग होने में लगभग दो माह कम है। कोर्ट ने अगली सुनवाई 18 जून रखी है। मामले में बेटमा इंदौर निवासी 42 वर्षीय किसान का लिवर ट्रांसप्लांट किया जाना है।
इस हेतु उसकी बेटी लिवर डोनेट करने को तैयार है लेकिन वह नाबालिग है। बालिग होने पर इस तरह के डोनेशन में किसी अनुमति की जरूरत नहीं होती, लेकिन डोनर के नाबालिग होने की स्थिति में कानूनी अनुमति जरूरी है। इसके चलते बेटमा निवासी 42 वर्षीय किसान की ओर से एडवोकेट नीलेश मनोर द्वारा हाईकोर्ट में अर्जेंट सुनवाई के निवेदन के साथ याचिका दायर की गई। कोर्ट द्वारा अर्जेंट सुनवाई की अर्जी मंजूर करते हुए शुक्रवार को मप्र हाई कोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर में चीफ जस्टिस शील नागू की एकल पीठ में मामले की सुनवाई हुई। जिसमें बेटमा इन्दौर निवासी कृषक की और से एडवोकेट नीलेश मनोरे ने तर्क रखते हुए बीमारी की गंभीरता बताने के साथ नाबालिग किशोरी को लिवर डोनेट करने की अनुमति देने की मांग की ताकि पीड़ित की जान बच सके।
इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस भेजते हुए निर्देशित किया कि मेडिकल जाँच कर रिपोर्ट पेश करे कि क्या नाबालिग लिवर डोनेट कर सकती है। अगली सुनवाई 18 जून को होगी। बता दें कि याचिकाकर्ता के परिवार में कोई और ऐसा नहीं है, जो लिवर डोनेट कर सके। हालांकि याचिकाकर्ता की पांच बेटियां हैं परन्तु वे सभी नाबालिग हैं। पत्नी को शुगर होने से वह ऐसा नहीं कर सकती। इसके कारण सबसे बड़ी बेटी अपने पिता को लिवर डोनेट करना चाहती है। उसके पूर्ण स्वस्थ होने संबंधित मेडिकल दस्तावेज भी याचिका के साथ लगाए गए हैं। परन्तु नाबालिग के चलते कोर्ट परमिशन जरूरी है।