नई दिल्ली । संसद में आज कैश फॉर क्वेरी मामले में पश्चिम बंगाल की टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की सदस्यता खत्म कर दी गई। संसद में चर्चा के दौरान महुआ मोइत्रा को बोलने का अवसर भी नहीं मिला। इस पर विपक्ष ने सवाल भी किये। सदन ने ध्वनिमत से महुआ की सदस्यता समाप्त करने के एथिक्स कमेटी के फैसले पर मुहर लगा दी। लोकसभा में शुक्रवार को पैसे लेकर सवाल करने के मामले को लेकर जबरदस्त हंगामा हुआ, जिसके चलते सदन की कार्रवाई कुछ समय के लिए स्थगित भी रही।
आखिरकार कैश फॉर क्वेरी मामले में महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता शुक्रवार 8 दिसंबर को रद्द कर दी गई। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने मोइत्रा के निष्कासन का प्रस्ताव सदन के समक्ष पेश किया, जिसे लोकसभा ने ध्वनिमत से मंजूरी प्रदान कर दी। इसे लेकर विपक्ष ने लोकसभा में चर्चा के दौरान सरकार पर नियमों का हवाला देते हुए अनेक सवाल भी उठाए। इसके जवाब में भाजपा मुखर होती दिखी। सदन में कांग्रेस की तरफ से मनीष तिवारी ने कहा कि वकालत पेशे में 31 साल के करियर में उन्होंने जल्दबाजी में बहस जरूर की होगी, लेकिन सदन में जितनी जल्दबाजी में उन्हें चर्चा में हिस्सा लेना पड़ रहा है, वैसा उन्होंने कभी नहीं देखा। उन्होंने कहा कि आसमान नहीं टूट पड़ता, यदि तीन चार-दिन हमें दे दिये जाते, ताकि (रिपोर्ट) पढ़कर सदन के समक्ष हम अपनी बात रखते।
लोकसभा अध्यक्ष ने दिया जवाब – इसके जवाब में भाजपा सांसद अपराजिता सांरगी ने कहा कि यह विषय अहम है क्योंकि संसद की मर्यादा और संवैधानिक प्रक्रियाओं से जुड़ता है। वहीं मनीष तिवारी के द्वारा उठाए गए सवाल पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि ‘यह संसद है न कि कोर्ट है। मैं न्यायाधीश नहीं हूं, सभापति हूं…यहां मैं निर्णय नहीं कर रहा, बल्कि सभा निर्णय कर रही है।’
महुआ को बात रखने का नहीं मिला मौका – सदन में एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान टीएमसी नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने इस बात को प्रमुखता से उठाया कि महुआ मोइत्रा को अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से कहा कि मोइत्रा को उनका पक्ष रखने का मौका दिया जाए। उन्होंने जोर देते हुए कहा, कि निष्पक्ष सुनवाई तब होती है जब प्रभावित व्यक्ति को सुना जाता है।’
संसदीय कार्य मंत्री का तर्क – संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सुदीप बंदोपाध्याय के सवाल का जवाब दिया और कहा, कि ‘लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के समय 10 लोगों को निष्कासित किया गया था। उस समय चटर्जी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि आरोपी सांसद कमेटी के समक्ष पेश हुए, ऐसे में इन्हें सदन में बोलने का अधिकार नहीं है।