नई दिल्ली – केंद्र सरकार ने सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के परिवहन मंत्रियों के सम्मेलन में एक आकर्षक प्रस्ताव दिया है। केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव से राज्य परिवहन निगम को बिना लागत के और बिना खर्च के बसें उपलब्ध कराई जाएगी। जब बसों की लागत चुक जाएगी। उसके बाद बसों पर राज्य परिवहन निगम का अधिकार हो जाएगा। परिवहन मंत्रालय का यह प्रस्ताव राज्य परिवहन निगम का पूरा ढांचा बदलने तथा अर्बन ट्रांसपोर्ट को विश्व स्तरीय बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया जा रहा है। इसके लिए परिवहन मंत्रालय ने एक नया मॉडल तैयार किया है।
केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने तीन बड़ी बस निर्माताओं को इस योजना के लिए सहमत कर लिया है। सभी राज्यों को समझौते के आधार पर यह बसें दी जाएंगी। बस की कीमत निकल जाने के बाद उसका मालिकाना हक राज्य परिवहन निगम को मिल जाएगा। केंद्र सरकार जो मॉडल लेकर आ रही है। वह लंदन में सफलतापूर्वक चल रहा है।
केंद्रीय परिवहन मंत्रालय राज्यों को बसें उपलब्ध कराएगा। बस में मेट्रो कार्ड की तरह टिकटिंग की व्यवस्था होगी। जिससे बसों में किराए की चोरी को रोका जा सकेगा। ई बसें होने के कारण इसमें डीजल चोरी होने जैसी संभावना नहीं होगी। जो भ्रष्टाचार और घाटे के बड़े कारण हैं। बसों में केवल एक गेट से यात्रियों का प्रवेश होगा। बस में कैमरे भी लगे होंगे।
परिवहन मंत्रालय के प्रस्ताव के अनुसार ई बसें होने के कारण इनकी लागत डीजल से चलने वाली बसों की तुलना में आधी होगी। 250 किलोमीटर बस चलने पर न्यूनतम 25000 रूपये की आय होगी। सभी तरह के खर्च निकाल देने के बाद भी राज्य परिवहन निगम को 8 से 10000 रूपये प्रति दिन की कमाई हो सकती है। इस कमाई से बसों का खर्च निकल आएगा। फाइनेंस करने वाले बैंक का ऋण 5 वर्ष में चुक जाएगा। बैंक राज्य परिवहन निगम को बसों का स्वामित्व दे देंगे।बैठक में विभिन्न राज्यों के आए हुए परिवहन मंत्रियों ने मुनाफे को लेकर आशंका व्यक्त की। वहीं बसों के रखरखाव और खर्चे को लेकर राज्यों ने अपनी चिंता जताई। इस पर जो भी स्पष्टीकरण राज्यों को आवश्यक होंगे वह परिवहन मंत्रालय उन्हें उपलब्ध कराएगा।
देश में सार्वजनिक बसों की हिस्सेदारी अभी 1 फ़ीसदी से भी कम है। केंद्र सरकार इसे न्यूनतम 5 फ़ीसदी से लेकर 8 फ़ीसदी तक करना चाहती है। बसों की फाइनेंसिंग के लिए निर्माता कंपनी और बैंकों के बीच में अनुबंध होगा। राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बसों को चलाने की होगी। बसों के संचालन से जो मुनाफा अर्जित हो रहा है। उससे उन्हें कर्ज चुकाना होगा। केंद्र सरकार को भी सब्सिडी और सहायता जैसी राशि का भुगतान राज्यों को नहीं करना पड़ेगा।
केंद्र सरकार का मानना है कि इस तरीके से सभी राज्यों के परिवहन निगम को बेहतर बनाया जा सकता है। उन्हें सार्वजनिक बस संचालन के लिए अलग से वित्तीय राशि का इंतजाम नहीं करना होगा। आम जनता को भी सस्ता परिवहन उपलब्ध होगा। केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव पर परिवहन मंत्रालय जल्द ही एक और बैठक बुलाएगा। उसमे प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।