नई दिल्ली। उत्तराखंड में कमजोर पहाड़ी पर बर्फ का लोड बढ़ने से हिमस्खलन होता है। हिमस्खलन के बाद चट्टान से बर्फ समेत मलमा, बोल्डर ढलान से नीचे गिरते हैं। ज्यादातर 3000 से 3500 मीटर से की ऊंचाई पर हिमस्खलन होता है। एक पूर्व वैज्ञानिक ने कहा है कि उत्तराखंड में चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ आदि जिलों के ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों में हिमस्खलन की संभावनाएं काफी रहती हैं। जिन पहाड़ियों की ढाल मजबूत नहीं होती। जब उन पर ज्यादा बर्फ पड़ती है तो पहाड़ी उस बर्फ के बोझ सहन नहीं पाती। इससे पहाड़ी का हिस्सा टूट जाता है। हिमस्खलन पर पहाड़ी से बर्फ तो गिरती ही है उसके साथ ही मलमा, बोल्डर आदि भी गिरने लगता हैं। एक ओर इससे जल स्त्रत्तेत, सड़क आसपास के निर्माण कार्यों को नुकसान होता है।
जब तेज हवाएं चलती हैं और उसके साथ ही बर्फबारी होती है। तब उसे बर्फीला तूफान बन जाता है। इसमें तेज हवाओं के साथ भारी बर्फबारी होती है। जो कि संबंधित जगह पर पहुंचे पर्वतारोहियों और अन्य लोगों के लिए खतरनाक होती है। यही कारण है कि ज्यादा बर्फ पड़ने पर पर्वतारोहियों को उन जगहों पर जाने के लिए मना किया जाता है। पहाड़ी की ढाल का कमजोर होने का कारण पहाड़ी और आसपास होने वाला निर्माण कार्य भी हो सकता है। निर्माण कार्यों के दौरान पहाड़ी का कटान किया जाता है। इससे प्राकृतिक मजबूती कम हो जाती है। भूस्खलन और अन्य आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है।