नई दिल्ली । समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिलाने की मांग करने वालों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा। सुप्रीम कोर्ट ने 9 जनवरी को अपने पुराने फैसले पर पुनर्विचार करने से मना कर दिया। पांच जजों की संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि 17 अक्टूबर 2023 को दिया गया निर्णय कानून और संविधान के अनुरूप था, और इसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अधिकार केवल संसद के पास है। संविधान पीठ के बीच समलैंगिक जोड़ों को सिविल अधिकार देने के मुद्दे पर मतभेद रहा था।
जहां सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने समलैंगिक जोड़ों के साथ रहने और बच्चे गोद लेने जैसे अधिकारों का समर्थन किया। तीन अन्य जजों ने कहा कि इन अधिकारों के लिए कानून में बदलाव जरूरी है, जो केवल संसद के द्वारा किए जा सकते है। भारत में विवाह के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट लागू है, जो विभिन्न धर्मों के लोगों को विवाह का अधिकार देता है। हालांकि, यह कानून केवल पुरुष और महिला के बीच विवाह की अनुमति देता है। इसमें समलैंगिक विवाह का कोई प्रावधान नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए संसद में कानून में संशोधन अनिवार्य है।
पुनर्विचार याचिका और निर्णय – 17 अक्टूबर 2023 के फैसले के खिलाफ उदित सूद, जो अमेरिकी वकील हैं, ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी। याचिका पर 9 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने चैंबर में सुनवाई की। जजों ने कहा कि पहले का फैसला पूरी तरह से संविधान और कानून के अनुरूप था, इसलिए फैसले को बदलने का कोई सवाल ही नहीं। वहीं सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद, अब समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिलाने का मामला संसद पर निर्भर करता है। यह देखना होगा कि इस मुद्दे पर कानून में कोई संशोधन होता है या नहीं। समलैंगिक समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे अपनी मांग को लेकर लड़ाई जारी रखने वाले है।