चंडीगढ़ : पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि सरकार पराली की एमएसपी निर्धारित करके किसानों से इसकी खरीद करे। पराली जलाने को लेकर सरकार द्वारा किसानों पर की गई कार्रवाई पूरी तरह निंदनीय है। सरकार ये किसान विरोधी फैसला वापिस ले। क्यूंकि किसान मजबूरी में ऐसा कदम उठाते हैं। सरकार को किसानों पर जुर्माना लगाने, उनके ऊपर FIR करने और उनको रेड लिस्ट करने की बजाय इसके समाधान पर काम करना चाहिए। पराली की खरीद करके इसका इस्तेमाल से कई तरह की चीज़ें बनाई जा सकती हैं, जैसे कि: ईंधन, बायो-थर्मोकोल, इथेनॉल, बायो-बिटुमन, पैलेट, लुगदी, खाद, ईंट ,बिजली आदि उत्पादन जैसे कार्यो में करना चाहिए।
हुड्डा ने कहा कि प्रदूषण में पराली जलने का बेहद कम अंश होता है। प्रदूषण का असली कारण कारखाने गाड़ियां और धूल होती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह पराली का निस्तारण करे या किसानों से पराली की खरीद की जाए। फिलहाल पराली के निस्तारण के लिए सरकार जो मशीन देने की बात कर रही है, वह कारगर साबित नहीं हो रही है। मशीनों की संख्या भी बहुत कम है। खास तौर पर छोटे किसान इनका इस्तेमाल करने में अक्षम है। क्योंकि एक कार्य के लिए कई-कई बार मशीनों को खेत में बुलाना पड़ता है। पहले धान के अवशेष को काटने, फिर उसके बाद उसे इकट्ठा करने और उसके बाद गांठ बनने के लिए अलग-अलग मशीनों को बुलाना पड़ता है। उसके बाद उठान में भी लंबा समय लग जाता है। तब तक आगामी फसल की बुवाई का समय निकल जाता है। सरकार को इन व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि किसान की असली समस्या को समझा जा सके।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने आवास पर पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे। इससे पहले किसानों के प्रतिनिधिमंडल ने उनसे मुलाकात कर एक ज्ञापन दिया। इस मौके पर हुड्डा ने बीजेपी सरकार को उसका चुनावी वादा याद दिलाया। हुड्डा ने कहा कि सरकार अपने वादे के मुताबिक किसानों की धान को ₹3100 प्रति क्विंटल के रेट पर खरीदे। आज स्थिति यह है कि किसानों को ₹3100 तो दूर एमएसपी तक नहीं मिल पा रही और उन्हें कम रेट में अपनी फसल बेचनी पड़ रही है। इतना ही नहीं उठान नहीं होने के चलते मंडियां धान से अटी पड़ी है और किसानों को अपनी फसल रखने के लिए जगह तक नहीं मिल पा रही। उठान में देरी के चलते पेमेंट में भी देरी हो रही है।