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विपक्षी दलों को संवैधानिक सत्र और सार्वजनिक समारोह में अंतर समझना चाहिए : राजनाथ सिंह

नई दिल्ली। नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर राजनीतिक बवाल जारी है। 20 विपक्षी दलों ने इसके बहिष्कार की घोषणा की है। 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन करने वाले हैं। हालांकि, विपक्षी दलों के आरोपों पर केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का बड़ा बयान आया है। राजनाथ ने कहा कि हमें संवैधानिक सत्र और सार्वजनिक समारोह में अंतर समझना चाहिए। साथ ही उन्होंने विपक्षी दलों से बहिष्कार के निर्णय पर फिर से विचार करने की अपील की। उन्होंने कहा कि 28 मई को प्रधानमंत्री नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित कर भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में नया अध्याय जोड़ने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि नया संसद भवन भारत के लोकतांत्रिक संकल्प के साथ 140 करोड़ भारतीयों के स्वाभिमान और उनकी आकांक्षाओं की भी अभिव्यक्ति है।

रक्षामंत्री सिंह ने कहा कि संसद भवन का उद्घाटन एक ऐतिहासिक क्षण है, जो 21वीं सदी में फिर नहीं आएगा। हमें संवैधानिक सत्र और सार्वजनिक समारोह में अंतर समझना चाहिए। मैं आग्रह करूंगा कि जिन राजनीतिक दलों ने बहिष्कार का निर्णय लिया है, वे अपने फैसले पर राजनीतिक लाभ हानि से परे जाकर फिर विचार करें। दूसरी ओर कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहूंगा। संवैधानिक मुखिया के अधिकार सिर्फ इसकारण नहीं छीने जा सकते कि वह एक आदिवासी महिला है। वह हमारे देश की राष्ट्रपति हैं। संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति को ही करना चाहिए।

विपक्षी दलों द्वारा नए संसद के उद्घाटन का बहिष्कार करने पर जेडीएस नेता और पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि इस तरह का उद्घाटन समारोह छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में भी किया गया। कर्नाटक में जब विकास सौधा का उद्घाटन हुआ था तब उन्होंने रमा देवी को उस समय आमंत्रित नहीं किया था जबकि वह उस समय कर्नाटक की राज्यपाल थी। तब अब ये राजनीति क्यों…मैं उनसे पूछना चाहता हूं। अब वे राष्ट्रपति के प्रति बहुत स्नेह और सम्मान दिखा रहे हैं। उन्होंने सवाल किया कि राष्ट्रपति चुनाव के समय उन्होंने उनके खिलाफ उम्मीदवार क्यों खड़ा किया? अब वे कह रहे हैं कि भाजपा आदिवासियों का अपमान कर रही है। यह सब केवल लोगों का ध्यान हटाने और समाज के एक वर्ग से वोट हासिल करने के लिए है।

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