नई दिल्ली । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ज्ञान और शिक्षा के केंद्र के रूप में भारत की ऐतिहासिक श्रेष्ठता को रेखांकित करते हुए कहा कि देश अपने पिछले गौरव को फिर से हासिल करने के मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़ रहा है। नालंदा और तक्षशिला जैसे संस्थानों की शानदार विरासत का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने समकालीन समय में भारत के शैक्षिक परिदृश्य में आदर्श बदलाव और पुनरुत्थान के बारे में प्रकाश डाला। दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (एसओएल) के 62वें स्थापना दिवस समारोह में उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कामकाजी पेशेवरों, गृहिणियों और छात्रों सहित जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से विविध शिक्षार्थियों के लिए एक परिवर्तनकारी मंच प्रदान करने के लिए एसओएल की सराहना की।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एसओएल ने उन लोगों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं जो पहले विभिन्न परिस्थितियों से मजबूर होकर शिक्षा से वंचित रह गए थे, वे अब अपनी दिनचर्या को बाधित किए बिना शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। धनखड़ ने ऐसे लोगों को दूसरा मौका देने के लिए एसओएल की सराहना की, जो पहले औपचारिक शिक्षा से चूक गए थे। एसओएल ने ज्ञान और कौशल के माध्यम से हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाया, जिससे वास्तविक समावेशिता का माहौल तैयार होने में मदद मिली। धनखड़ ने शैक्षणिक संस्थानों के सार और गुणवत्ता को आकार प्रदान करने में बुनियादी ढांचे की तुलना में संकाय की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी जोर दिया।]
धनखड़ ने कहा कि शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्त करने का साधन ही नहीं है; बल्कि, यह प्रगति, सशक्तिकरण और सामाजिक बदलाव की आधारशिला भी है। शिक्षा उस ताले की वह कुंजी है जो प्रगति, समृद्धि और सशक्तिकरण के द्वार खोलती है। शिक्षा सबसे बड़ा अधिकार और दान है। उन्होंने कहा कि शिक्षा से बड़ा कोई मौलिक अधिकार नहीं हो सकता और शिक्षा से बड़ा कोई दान नहीं हो सकता।