नई दिल्ली। शिवसेना के 16 बागी विधायकों के निलंबन पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला आ गया है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 2016 का नबाम रेबिया मामला, जिसमें कहा गया था कि स्पीकर को अयोग्य ठहराने की कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है, जब उनके निष्कासन का प्रस्ताव लंबित है, तो इसमें एक बड़ी पीठ के संदर्भ की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अब इसे बड़ी बेंच के पास भेजा जाना चाहिए। अगर स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, तो क्या वह विधायकों की अयोग्यता की अर्जी का निपटारा कर सकते हैं, अब इस मुद्दे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ करेगी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि व्हिप को मान्यता देकर स्पीकर की कार्रवाई की वैधता की जांच करने से अदालतों को अनुच्छेद 212 से बाहर नहीं किया जा सकता है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्हिप राजनीतिक पार्टी द्वारा जारी किया जाता है और संविधान की 10वीं अनुसूची में आता है। 21 जून, 2022 को शिवसेना विधायक दल के सदस्य मीटिंग करते हैं और एकनाथ शिंदे को पद से हटाते हैं। स्पीकर को राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए थी, न की शिंदे गुट द्वारा नियुक्त व्हिप भरतशेट गोगावले को। इस तरह सुप्रीम कोर्ट से शिंदे गुट को व्हिप की नियुक्ति को लेकर झटका लगा है।
बता दें कि इधर उद्धव ठाकरे गुट ने जिन 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की थी, उनमें स्वयं एकनाथ शिंदे, भरतशेट गोगावले, संदिपानराव भुमरे, अब्दुल सत्तार, संजय शिरसाट, यामिनी जाधव, अनिल बाबर, बालाजी किणीकर, तानाजी सावंत, प्रकाश सुर्वे, महेश शिंदे, लता सोनवणे, चिमणराव पाटिल, रमेश बोरनारे, संजय रायमूलकर और बालाजी कल्याणकर शामिल हैं। अब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना-भाजपा सरकार का भविष्य सुप्रीम कोर्ट सात जजों वाली संविधान पीठ के निर्णय पर निर्भर करेगा। अगर फैसला एकनाथ शिंदे गुट के खिलाफ आता है, तो महाराष्ट्र में एक बार फिर राजनीतिक संकट देखने को मिलेगा।
गौरतलब है कि जून 2022 में एकनाथ शिंदे और उनके गुट के विधायकों ने शिवसेना से बगावत कर दी थी, जिसके बाद उद्धव ठाकरे को 29 जून, 2022 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और उनके नेतृत्व वाली एमवीए सरकार गिर गई थी। इसके अगले दिन शिवसेना के बागी गुट ने भाजपा के समर्थन से नई सरकार बनाई और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने थे। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री बनना स्वीकार किया था।
इसके बाद उद्धव ठाकरे गुट ने विधानसभा उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल के पास सभी 16 बागी विधायकों को अयोग्य करार देने की याचिका दायर की थी, जिस पर उन्होंने उद्धव गुट के समर्थन में फैसला भी लिया था। हालांकि, एकनाथ शिंदे समेत 16 बागी विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में विधानसभा उपाध्यक्ष के फैसले के खिलाफ याचिका दायर कर अपनी अयोग्यता पर रोक लगाने की मांग की। एकनाथ शिंदे गुट का कहना था कि उपाध्यक्ष के खिलाफ पहले ही कुछ विधायकों ने अविश्वास प्रस्ताव लाया है, ऐसे में वे विधायकों के निलंबन पर फैसला नहीं ले सकते। करीब 9 महीने तक चली लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।